नाश्ता मिले तो समझो परायापन। खाना मिले तो अपनों का अपनापन।। नाश्ता मिले तो समझो परायापन। खाना मिले तो अपनों का अपनापन।।
जीवन का दर्शन कराती यह कविता मनुष्य को उसके अस्तित्व के बार में बताती है । जीवन का दर्शन कराती यह कविता मनुष्य को उसके अस्तित्व के बार में बताती है ।
आँखे निस्तेज डरी हुई सी भय थिरकन से भरी हुई सी खतरा हर पल लगा हुआ सा गले में अटकी जान हूँ। आँखे निस्तेज डरी हुई सी भय थिरकन से भरी हुई सी खतरा हर पल लगा हुआ सा गले में ...
उन सारे अधूरे सवालों का ज़िक्र मेरे ख़्वाबों में कर जाया करती है... उन सारे अधूरे सवालों का ज़िक्र मेरे ख़्वाबों में कर जाया करती है...
मैं रोशनी का सलार हूँ । मैं रोशनी का सलार हूँ ।
मैं भी चट्टान का जो बेटा हूँ...! मैं भी चट्टान का जो बेटा हूँ...!